मै रौशनी की तलाश मे कुछ.....

मै रौशनी की तलाश मे कुछ, बुझी मशालें जला रहा हूँ,
स॔भल के रहना अंधेरे वालों, मै अपना सूरज बना रहा हूँ,

खरीददारों ये मत समझना, मयार मे मेरे कुछ कमी है,
तुम्हारी गुरबत को देख कर मै खुद अपनी कीमत घटा रहा हूँ

सुना है मैने कि आज कल वो, खुदा समझने लगे हैं खुद को,
अब उनके सजदे मे सर को अपने, मै झुक के रहना सिखा रहा हूँ,

मेरी मुहब्बत या तेरी नफ़रत ये बाज़ी जीतेगा कौन देखें,
तू मूझ को खुद मे घटा रही है, मै तुझको खुद मे बढा रहा हूँ,

अगर हवाओं को कोई शक है, तो हौसले मेरे आज़मा लें,
मै कितनी शिद्दत से आसमाँ मे कटी पतंगें उड़ा रहा हूँ

शिकस्तगी का जो दर्द था वो छुपा के सीने मे रख लिया है,
मै खुद तो हारा हुआ हूँ लेकिन जहाँ को हिम्मत बंधा रहा हूँ,

तुझे भुलाया है जब से मैने अजब पसोपेश मे पड़ा हूँ
मै तुझ से दूरी बढा रहा हूँ या तेरे नज़दीक आ रहा हूँ!

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